Re Kabira 056 - मेरी किताब अब भी ख़ाली



--o Re Kabira 056 o--

मेरी किताब अब भी ख़ाली

बारिष की उन चार बूँदों का इंतेज़ार था धरा को,
जाने किधर चला गया काला बादल आवारा हो 

आग़ाज़ तो गरजते बादलों ने किया था पूरे शोर से,
आसमाँ में बिजली भी चमकी पुरज़ोर चारों ओर से 

कोयल की कूक ने भी ऐलान कर दिया बारिष का,
नाच रहे मोर फैला पंख जैसे पानी नहीं गिरे मनका 

ठंडी हवा के झोंके से नम हो गया था खेतिहर का मन, 
टपकती बूँदों ने कर दिया सख़्त खेतों की माटी को नर्म

मिट्टी की सौंधी ख़ुश्बू का अहसास मुझे है होने लगा,
किताबें छोड़ कर बच्चों का मन भीगने को होने लगा 

खुश बहुत हुआ जब देखा झूम कर नाचते बच्चों को,
बना ली काग़ज़ की नाव याद कर अपने बचपन को 

बहते पानी की धार में बहा दी मीठी यादों की नाव को, 
सोचा निकल जाऊँ बाहर गीले कर लूँ अपने पाँव को 

रुक गया, पता नहीं क्यों बेताब सा हो गया मेरा मन,
ख़ाली पन्नो पर लिखने लगा कुछ शब्द हो के मगन 

तेज़ थी बारिष, था शोर छत पर, था संगीत झिरती बूँदों में, 
तेज़ थी धड़कन था मन व्याकुल थी उलझन काले शब्दों में 

लिखे फिर काटे फिर लिखने का सिलसिला चला रात भर,
बुन ही डाला ख़्यालों के घोंसले को थोड़े पीले-गीले पन्ने पर 

थम गयी बारिष, फिर हो गयी ख़ाली मेरी चाय की प्याली,
रुकी गयी कलम, टूट गया ख़्वाब मेरी, किताब अब भी ख़ाली

मेरे जीवन की किताब अब भी है ख़ाली



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley

--o Re Kabira 056 o--

Most Loved >>>

Re Kabira 087 - पहचानो तुम कौन हो?

चलो नर्मदा नहा आओ - Re Kabira 088

Re Kabira 086 - पतंग सी ज़िन्दगी

Re kabira 085 - चुरा ले गये

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू - Re Kabira 090

तमाशा बन गया - Re Kabira 089

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

Re Kabira 065 - वो कुल्फी वाला