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Re Kabira 059 - क्या ढूँढ़ते हैं ?

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--o Re Kabira 059 o-- क्या ढूँढ़ते हैं ? आप मेरी सुकून की नींद को मौत कहते हैं,  और फिर अपने  ख्वाबों मे मुझे ढूँढ़ते हैं  अजीब इत्तेफ़ाक़ है की आप मुझसे भागते हैं,  और फिर साथ फुर्शत के दो पल ढूँढ़ते हैं  कभी आप मेरे काम तो तमाशा कहते हैं,  और फिर कदरदानों की अशर्फियाँ ढूँढ़ते हैं  देखिये आप मुझे वैसे तो दोस्तों में गिनते हैं,  और फिर मुझमें अपने फायदे ढूँढ़ते हैं  कभी आप मेरे साथ दुनिया से लड़ने चलते हैं,  और फिर दुश्मनों में दोस्त ढूँढ़ते हैं  ओ रे कबीरा ! लिखते नज़्म गुमशुम एक कोने में,  और फिर भीड़ में चार तारीफें ढूँढ़ते हैं आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley --o Re Kabira 059 o--

Re Kabira 058 - That Shadow of Mine

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  --o Re Kabira 058 o-- I was a hollow frame, with that shadow of mine my mother instilled beliefs in my mind a teacher walked along and left trust behind and a family reminded me of pride that outshined I was a friend, with that shadow of mine someone robbed me of my beliefs I carried on with that trust & pride of mine another robbed me of my trust I carried on with my pride that once outshined Yesterday I've been robbed again and left me with no pride and I'm carrying on with a hollow frame of mine don't know how to get rid of that shadow of mine it's always following me behind, that shadow of mine -- Ashutosh Jhureley -- --o Re Kabira 058 o--

Re Kabira 057 - कहाँ चल दिये अभी तो बहुत सारी बातें बाँकी है

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  --o Re Kabira 057 o-- कहाँ चल दिये अभी तो बहुत सारी बातें बाँकी है कहाँ चल दिये अभी तो बहुत सारी बातें बाँकी है यहाँ कुछ यादें है, अभी तो सपने बुनना बाँकी है अभी आधे रास्ते चले है सफ़र थोड़ा और बाँकी है  सभी दीवारें तो बन गयी, घर की छत बनना बाँकी है मिले दसियों यार-दोस्त, खुद से दोस्ताना बाँकी है  पढ़े आपके बहुत शेर, अपनी ग़ज़ल सुनना बाँकी है जहाँ देखो जल्दबाज़ी है, ज़रा सा सुस्ताना बाँकी है  कहाँ भागे जा रहे हो, जो छूट गये उसे लेना बाँकी है देखे तारे बहुत रात भर, अभी तोड़ कर लाना बाँकी है सीखे ग़ुर बहुत उम्र भर, अभी चाँद को झुकाना बाँकी है  लड़खड़ाये, सम्भल गए, पर बदलना अभी बाँकी है  ज़माने ने सुनाया बहुत, पर जवाब देना अभी बाँकी है  अब तक परख़े मख़मल, ख़ारज़ार पर चलना बाँकी है अब तक पतझड़ देखा है, गुलों का खिलना बाँकी है कभी कहते थे फिर मिलेंगे, आपका लौटना बाँकी है अभी तक तुम ख़फ़ा हो, ग़लतफ़हमी मिटाना बाँकी है  कब तक बारिश से बचोगे, भीगने का लुफ़्त बाँकी है जब मिल ही गया इशारा, बस बेक़रार होना बाँकी है कहाँ चल दिये अभी तो बहुत सारी बातें बाँकी है यहाँ कुछ यादें है, अभी तो सपने बुनन

Re Kabira 056 - मेरी किताब अब भी ख़ाली

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--o Re Kabira 056 o-- मेरी किताब अब भी ख़ाली बारिष  की उन चार बूँदों का इंतेज़ार था  धरा को, जाने किधर चला गया काला बादल आवारा हो  आग़ाज़ तो गरजते बादलों ने किया था पूरे शोर से, आसमाँ में बिजली भी चमकी पुरज़ोर चारों ओर से  कोयल की कूक ने भी ऐलान कर दिया बारिष का, नाच रहे मोर फैला पंख जैसे पानी नहीं गिरे मनका  ठंडी हवा के झोंके से नम हो गया था खेति हर का मन,  टपकती बूँदों ने कर दिया सख़्त खेतों की माटी को नर्म मिट्टी की सौंधी ख़ुश्बू का अहसास मुझे  है  होने लगा, किताबें छोड़ कर बच्चों का मन भीगने को होने लगा  खुश बहुत हुआ जब देखा झूम कर नाचते बच्चों को, बना ली काग़ज़ की नाव याद कर अपने बचपन को  बहते पानी की धार में बहा दी मीठी यादों की नाव को,  सोचा निकल जाऊँ बाहर गीले कर लूँ अपने पाँव को  रुक गया, पता नहीं क्यों बेताब सा हो गया मेरा मन, ख़ाली पन्नो पर लिखने लगा कुछ शब्द हो के मगन  तेज़ थी बारिष, था शोर छत पर, था संगीत झिरती बूँदों में,  तेज़ थी धड़कन था मन व्याकुल थी उलझन काले शब्दों में  लिखे फिर काटे फिर लिखने का सिलसिला चला रात भर, बुन ही डाला ख़्यालों के घोंसले को थोड़े पीले-गीले प

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

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Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep" ( कवि प्रदीप) was an Indian poet and songwriter who gave patriotic Hindi movies some songs that became larger calls. He adopted the pen name "Pradeep" and became renowned as Kavi Pradeep. His most famous song is "Aye Mere Watan Ke Logo" (ऐ मेरे वतन के लोगों), sung by Lata Mangeshkar, made then Prime Minister of India Pt. Nehru cry. Sharing my favorite poems of " Pradeep " here: कभी धुप कभी छाँव सुख दुःख दोनों रहते  जिसमे  जीवन है वो गाँव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते कड़वे मीठे फल करम के, यहाँ सभी पते कभी सीधे कभी उलटे पड़ते, अजब समय के पाँव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव क्या खुशियाँ क्या गम, ये सब मिलते बारी बारी मालिक की मर्ज़ी पे, चलती ये दुनिया सारी ध्यान से खेना जग में, बन्दे अपनी नाव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव कभी कभी खुद से बात करो कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो। अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो। कभी कभी खुद

Re Kabira 055 - चिड़िया

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--o Re Kabira 055 o-- चिड़िया इधर फुदकती उधर चहकती,डर जाती फिर उड़ जाती तिनके चुनती थिगड़े बुनती, झट से पेड़ों में छुप जाती सुबह होते शाम ढलते, मीठे गीत फिर सुनाने आ जाती दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती कभी बारिश कभी तूफान, भाँपते जाने कहाँ गायब  हो  जाती  कभी चील कभी कौये, देख क्यों तुम घबड़ा सी जाती  बच्चे ढूंढे आँखें खोजें, जिस दिन तुम कहीं और चली जाती  दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती गेहूँ खाती टिड्डे खाती, बागीचे  के  किसी कोने में घर बनाती  तुम लाती चिड़ा लाता, बारी- बारी  तुम चूजों को खिलाती  खाना सिखाती गाना सिखाती, फिर बच्चों संग उड़ जाती दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती सबेरे  जाती साँझ आती, फिर झाड़ी में गुम हो जाती  जल्दी  उठाती देर तक बहलाती,  जाने  कब तुम सोने को जाती कुछ दिन कुछ हफ्ते, तुम मेरे घर की रौनक बन जाती  दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley --o Re Kabira 055 o--

Re Kabira 054 - इतनी जल्दी थी

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--o Re Kabira 054 o-- इतनी जल्दी थी जाने की इतनी जल्दी थी सीधे ख़ुदा से क्यों बात कर ली, जिस तरह चले गए ऐसी कोई भी बात इतनी बड़ी थी भली।  इतनी तेज भागते रहे की साँस लेने फ़ुरसत मिली ही नहीं, न तुमने देखा न तुमको देखा कब कदम थम गए बस वहीं।  चिल्लाए तो बहुत पर आवाज़ पलट कर आयी ही नहीं, हज़ारों दोस्त हैं पर एक को भी तकलीफ़ दिखाई दी नहीं।  सारे दोस्त मुज़रिम हैं क्यों कल उससे बात नहीं कर ली, जाने की इतनी जल्दी थी सीधे ख़ुदा से क्यों बात कर ली। आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira He couldn’t find someone to talk only option was to meet God. All the friends are now feeling guilty why they didn’t speak with him yesterday. #MentalHealthMatters #RIPSSR  #JustTalk --o Re Kabira 054 o--