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Re Kabira 074 - भाग भाग भाग

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  --o Re Kabira 074 o-- भाग भाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग तेज़ भाग, भाग तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग और तेज़ भाग, और तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग इधर भाग, उधर भाग, बस भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग गिर फिर उठ, उठ फिर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग ठोकर से न रुक, चोट से न चूक भाग भाग भाग, भाग भाग भाग दिन भर भाग, रात भर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग चोरी कर भाग, धोखा देकर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कुचल कर भाग, धकेल कर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग धुप में, ठण्ड में, बारिश में भाग   भाग भाग भाग, भाग भाग भाग बीमारी में भाग, लाचारी में भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भूखे थके भाग, थके भूखे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग सो जाग खा भाग, खा सो जाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कोई न रोके, कोई न टोके भाग भाग भाग, भाग भाग भाग अकेले ही भाग, सबको ले भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग साँसे उखड़े भाग, टांगे टूटे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग हँसते रोते भाग, रोते गाते भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग, भाग कहाँ पहुँचना हैं?, है पता तुझको? भाग, भाग क्या छूटा?, है पता तुझको? भाग भाग क्या पाया?, है पता तुझक

Re Kabira 073 - ख़रोंचे

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  --o Re Kabira 073 o-- ख़रोंचे किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर किसको चाहिये ख़्वाब भारी चट्टानों से, ज़िन्दगी की लहरों ने क्या कम तोड़ा है टकरा कर   किसको जाना धरा की दूसरी छोर तक, चार कदमों का फासला ही काफी है चलो अगर किसको उड़ना है आसमान के पार, बस कुछ बादल चाहिये हैं जो बरसे जम कर किसको बटोरना है दौलत सारे जहाँ की, चकाचक की होड़ मे सभी लगे हुये हैं देखो जिधर  किसको इकट्ठे करने सहानुभूति दिखाने वालों को, चारों ओर हज़ारों की भीड़ है सारे बुत मगर किसको चाह है किसी कि दुआ की, लगता है बद-दुआ ही है जिसका हुआ असर  किसको सहारा चाहिये मदहोशी का, ये अभिमान का ही तो नशा है जो चढ़े सर किसको हिसाब चाहिये हर पल का, थोड़ा वक़्त तो निकाल सकते हैं साथ एक पहर किसको लूटना है वाह-वाही सब की, कभी-कभी तो हम बात कर सकतें हैं तारीफ़ कर किसको पढ़ना है कवितायेँ शौर्य-सुंदरता की, बस एक शब्द ही काफी है शुक्रिया-धन्यवाद कर  किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 073 o--

Re Kabira 072 - बातें हैं बातों को क्या !!!

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--o Re Kabira 072 o-- बातें हैं बातों को क्या  बातों बातों में निकल पड़ी बात बातों की,  कि बातों की कुछ बात ही अलग है  मुलाकातें होती हैं तो बातें होती हैं, फिर मुलाकातों की बातें होती है और मुलाकातें न हो तो भी बातें होती है देखे तो नहीं, पर बातों के पैर भी होते होंगे, कुछ बातें धीरे की जाती हैं, कुछ तेज़, कुछ बातें दबे पाँव निकल गयी तो दूर तक पहुँच जाती हैं  कुछ बातें दिल को छु कर निकल जाती हैं, और कभी सर के ऊपर से  कुछ बातें तो उड़ती-उड़ती, और कभी गिरती-पड़ती बातें आप तक पहुँच ही जाती है  बातों के रसोईये भी होते होंगे, जो रोज़ बातें पकाते हैं  कुछ लोग मीठी-मीठी बातें बनाते हैं, कुछ कड़वी बातें सुना जातें हैं कभी आप चटपटी बातें करते हैं, तो कभी मसालेदार बातें हो जाती हैं   और कुछ बातें तो ठंडाई जैसी होती है, दिल को ठंडक पहुंचा जाती हैं  वैसे तो अच्छी बातें, बुरी बातें, सही बातें और गलत बातें होती  हैं बातों का वजन भी होता है, कुछ हलकी होती हैं तो कुछ बातें भारी हो जाती हैं यूं तो कुछ लोग बातें छुपा लेते, तो  कुछ  बातों को रखकर चले जाते हैं, कोई दबा देता है,  और   फिर कोई आकर बातों तो उछाल ज

Re Kabira 071 - कीमती बहुत हैं आँसू

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--o Re Kabira 071 o--   कीमती बहुत हैं आँसू  छलके तो ख़ुशी के, जो बहें तो दुःख के आँसू कभी मिलन के, तो कभी बिछड़ने के आँसू कभी सच बताने पर, कभी झूठ पकड़े जाने पर निकल आते आँसू कभी कमज़ोरी बन जाते, तो कभी ताक़त बनते आँसू कभी पीकर, तो कभी पोंछकर चलती ज़िन्दगी संग आँसू कभी लगते मोतियों जैसे, तो कभी दिखते ख़ून के आँसू कभी खुद को खाली कर देते, तो कभी सहारा बन जाते आँसू कभी दरिया बन जाते, तो कभी सैलाब बन जाते ऑंसू दिल झुमे तो, रब चूमे  तो पिघलते भी आँसू कभी डर के मारे,  कभी घबड़ाहट से आ जाते हैं आँसू गुस्से में राहत देते, धोखे में आहात देते ऑंसू कहते हैं बह जाने दो, दिल हल्का कर देंगे ये आँसू दर्द का , चोटों का , तकलीफों का आइना आँसू नफरत की ज़िद में, इश्क़ की लत जमते आँसू मजबूरी के, लाचारी के, जीत के, हार के होते आँसू सीरत तो नम होती इनकी, सूख भी जाते हैं आँसू कवितओं में, कहानियों में, शेऱ-शायरियों में बस्ते ऑंसू प्रेम के, भक्ति के, समर्पण के गवाह आँसू कभी छोटे, कभी बड़े, बहुत काम के हैं ऑंसू ओ रे कबीरा संजो के रखो, कीमती बहुत हैं आँसू आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 071 o--

Re Kabira 0070 - अभी बाँकी है

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--o Re Kabira 070 o-- अभी बाँकी है कभी ठहाके कभी छुपी हुई मुस्कुराहटें, हँसते हँसते रोना अभी बाँकी है कुछ किस्से कुछ गप्पें, कुछ नयी और बहुत सी पुरानी कहानियाँ सुनना अभी बाँकी है  हमने तो आप लोगों को पूरी तरह परेशान करा, आपका थोड़ा तो बदला लेना अभी बाँकी  है  काफ़ी पिटाई करी खूब कान मरोड़े, अक्ल अभी भी हमको न आयी,  ...और डाँट खाना अभी बाँकी है हम लोगों को आपने जैसे तैसे निबटा दिया, हमारी अंग्रेज औलादों को निबटना अभी बाँकी है  खूब पैसे जोड़ लिए, खूब बचत कर ली, हमारे लिए ... अपने ऊपर कुछ खर्चना अभी बाँकी है   बहुत भागा-दौड़ी, चिंता विंता हो गयी, कुछ पल फुर्सत से बिताना अभी बाँकी है  कसर कोई छोड़ी नहीं हमारे लिए, हमारी परीक्षा तो अभी बाँकी है बहुत से चुटकुले, बहुत सी अटकलें, आपका बहुत सी महफ़िलों को चहकाना अभी बाँकी है अहिल्या  की कहानियाँ चल ही रही है, हमारे पप्पू के कारनामे सुनना अभी बाँकी है  अकेले चाय पीने में बिलकुल मज़ा नहीं आता, खूब चाय पीना अभी बाँकी है  आपकी मुस्कराहटों पर आपकी हँसी पर लाखों न्योछारावें अभी बाँकी है  बहुत सारा प्यार और उससे ज्यादा आपका  आशीर्वाद  अभी बाँकी है  ये तो बस t

Re Kabira 0069 - रंगों में घोली होली है

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  --o Re Kabira 069 o-- रंगों में घोली होली है देखो कैसी ये होली है, हमने रंगों में घोली होली है छिड़क तनिक गुलाल, प्यार जताने की होली है मार पिचकारी लाल रंग की, शिक़वे मिटाने की होली है सन दो कौसुम्भ की सुगंध में, ये मानो भक्तों की होली है गोबर की जो महक आये, तो भैया भागो अंध-भक्तों की होली है जहाँ नील ही नील दिखे, समझो आज खूब खेली होली है जरा सिन्दूर चढ़ा कर, पुजारी ने भी खेली होली है पीलक ने भी खेली, मौसम बदलने के होली है नारंगी-हरे रंग में फ़रक न दिखे, तो ये असली होली है राख में ढ़के हुए, साधु-सन्यासियों ने खेली होली है श्वेत टिका लगाए, वृन्दावन के आश्रम में खिली होली है माटी-कीचड़ में सने, श्रमिक-किसानों की भी ये होली है मिट्टी में लिपटे हुए, माली के बच्चों ने खेली होली है श्याम रंग में छुपे, कुछ अतरंगों की होली है रंगों की होदी में धकेल, दोस्तों ने भी खेली होली है चार लकीरें रंगो में लगाकर ही सही, हिचकिचाहट से कुछ लोगों ने खेली होली है कुछ गीली कुछ सूखी, नीली-पीली, लाल-गुलाबी सतरंगों में डूबी हुई, आज खुशियों की होली है रंगों में घोली होली है, होली है भाई होली है.. आशुतोष झुड़ेले Ashutos

Re Kabira 0068a - I wish I were a cloud

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  --o Re Kabira 068 o-- I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, always lost in my own thoughts, and everyone would have called me a crazy cloud, winds would have carried my abode, and would have changed colors with every season. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have been adorned on eyes of the sun, and would have covered the moon in a cashmere shawl, would have been a prince's horse, and wings of a beautiful fairy. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have played hide & seek with the stars, and would have flown high with the birds, would have thundered when sad, and would have rained in joy. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have been a roof on top of a couple in love, and would have danced wild would have been a story, a poem, or a song and would be been a colorful painting. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud,  would have been  impersonator dreaming all day, and everyone would have been jealous, would have had boundless dreams, a