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Showing posts from May, 2024

तुम कहते होगे - Re Kabira 093

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-- o Re Kabira 093 o-- मेरे प्रिय मित्र के पिता जी का निधन कुछ वर्षों पहले हो गया था.  ये कविता मेरे दोस्त के लिए, अंकल की याद में.... तुम कहते होगे जब भी तुम किसी परेशानी के हल खोजते होगे  जब भी कभी तुम थक-हार कर सुस्ताने बैठते होगे  जब भी तुम धुप में परछाई को पीछे मुड़ देखते होगे जब भी तुम आईने में खुद से चार बातें करते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब आंटी की चाय उबल बार बार छलक जाती होगी  जब आंटी डाँटने से पहले कुछ सोच में पड़ जाती होंगी  जब आंटी दाल में नमक डालना बार बार भूल जाती होंगी  जब आंटी दीवार पर लगी तस्वीर में घंटों खो जाती होंगी  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब बच्चों की आँखों अपनी तस्वीर देखते होगे  जब बच्चों की आदतों में अपने आप को पाते होगे  जब बच्चों की ज़िद के आगे न चाह के हारते होगे  जब बच्चों थोड़ी देर नज़र न आये तो घबराते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब पत्नी की चिड़-चिड़ाहट में अपना बचपन देखते होगे  जब पत्नी और बच्चों की बातों में अपना लड़कपन देखते होगे  जब पत्नी के साथ तस्वीरों में अपना

मिलना ज़रूरी है - Re Kabira 092

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—o Re Kabira 092 o— मिलना ज़रूरी  है कहाँ से चले थे, कहाँ पहुँच गए जिन रास्तों पर साथ चले थे, पता नहीं कब अलग हो गए जो यार कमर से जुड़े थे, ऐसा लगता है बिछड़ गए ....  सूरत बदल गई, सीरत बदल गई, आदतें बदल गईं, शौक बदल गए, दस्तूर बदल गए, रिवाज़ बदल गए ....  तुम नहीं सुधरोगे.... तुम बिल्कुल नहीं बदले  ... सुनना ज़रूरी है, मिलना ज़रूरी है P.E.T. की रैंक, कॉलेज, ब्रांच, हॉस्टल में कमरा, viva, practical, exam, CAT, GATE , GRE , GMAT, कैंपस इंटरव्यू, की दौड़ नौकरी, तर्रक्की, ओहदा, दौलत, शोहरत की होड़ CEO, CTO, COO, CIO, Manager, Partner,  Director,  Founder, Co-founder,  Developer, Engineer, Scientist, Professor, Mentor के पीछे मेरे दोस्त तुम हो, नहीं कोई और Facebook, Insta, LinkedIN दिखाती नकली तसवीरें, है असलियत और बोला था फिर मिलेंगे किसी चौराहे, किसी मोड़ अपनी लड़ाई की कहानी जो रखी है तुमने जोड़ ... बांटना ज़रूरी है, मिलना ज़रूरी है आपने श्रीमति - श्रीमान से छुपा रखे हैं जो राज़, किस्से कहानी बताईं, नहीं बताये असल काण्ड काज कॉलेज का पोर्च, क्लासरूम, कैंटीन के पोहे, हॉस्टल के कमरे, कमरों की खिड़की के किस्

क्यों न एक प्याली चाय हो जाए - Re Kabira 091

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  क्यों न एक प्याली चाय हो जाए? कुछ चटपटी कुछ खट्टी-मीठी बातें,  साथ बिस्कुट डुबो कर हो जाएं  पूरे दिन का लेखा-जोखा,  थोड़ी शिकायत थोड़ी वक़ालत हो जाए  ज़रा सुस्ताके फिर भाग दौड़ में लगने से पहले, सुबह-दोपहर-शाम ... क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए? कभी बिलकुल चुप्पी साधे, कभी गुनगुनाते खिलखिलाते बतयाते कभी गहरी सोच में कभी नोक झोंक में  कभी किसी के इंतज़ार में कभी किसी से इंकार में  पहले आप पहले आप में , सामने रखी हुई कहीं ठंडी न हो जाए  किसी बहाने से भी..  क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए? छोटे बड़े सपने चीनी संग घुल जाएं  मुश्किल बातें उलझे मसले एक फूँक में आसन हो जाएं  खर्चे-बचत की बहस साथ अदरक कुट जाए और बिना कुछ कहे सब समझ एक चुस्की लगाते आ जाए सेहत के माने ही सही मीठा कम की हिदयात मिल जाए  और फिर कहना, मन नहीं भरा.... क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए? सकरार की चर्चा, पड़ोस की अफ़वाह मसालेदार हो जाएं  बिगड़ते रिश्ते, नए नाते निखर जाएं  चुटकुले-किस्से-अटकलें और भी मजेदार हो जाएं  दोस्तों से गुमठी पर मुलाकातें यादगार हो जाएं  और बारिश में संग पकोड़े मिल जाए तो बनाने वाले की जय जय कार हो जाए  आखि