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Showing posts from March, 2020

Re Kabira 051 - अक्स

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--o Re Kabira 051 o-- अक्स कभी मेरे आगे दिखती हो, कभी मेरे पीछे चलती हो कभी साथ खड़ी नज़र आती हो, कभी मुझ में समा जाती हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी परछाई तो नहीं हो? कभी सुबह की धुप में हो , कभी दोपहर की गर्मी में हो  कभी शाम की ठंडी छावं में हो , कभी रात की चाँदनी में हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी अंगड़ाई तो नहीं हो? कभी मेरी घबराहट में हो, कभी मेरी मुस्कुराहट में हो कभी मेरी चिल्लाहट में हो, कभी मेरी ह्रडभडाहट में हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी सच्चाई तो नहीं हो? कभी मेरी कहानी में हो, कभी मेरी सोच में हो कभी मेरे सपनों में हो, कभी मेरे सामने खड़ी हुई हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी आरज़ू तो नहीं हो? कभी पंछी चहके तो तुम हो, कभी बहते झरनों में तुम हो कभी हवा पेड़ छू के निकले तो तुम हो, कभी लहरें रेत टटोलें तो तुम हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी ख़ामोशी तो नहीं हो? कभी कबीर के दोहो में हो, कभी ग़ालिब के शेरों में हो कभी मीरा के भजन में हो, कभी गुलज़ार के गीतों में हो सोचता हूँ तुम कौन हो, कहीं मेरी आवा

Re Kabira 050 - मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं

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-o Re Kabira 050 o-- मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं, कुछ सुनने के लिए कुछ सुनाने लिए, कुछ समझने के लिए कुछ समझाने के लिए कुछ बार-बार रूठने के लिए कुछ बार-बार मनाने के लिए कुछ बार-बार मिलने के लिए कुछ बार-बार बिछड़ जाने के लिए मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं, कुछ पीठ दिखाने के लिए कुछ पीठ पर आघात से बचाने के लिए कुछ झूठ बोलने के लिए कुछ सच छुपाने के लिए कुछ दूर खड़े रहने के लिए कुछ दूर खड़े रहने का यक़ीन दिलाने के लिए कुछ भरोसा करने के लिए कुछ का विस्वास बन जाने के लिए मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं, कुछ चापलूसी करने के लिए कुछ हौसला बढ़ाने के लिए कुछ तालियाँ बजाने के लिए कुछ सच्चाई बताने के लिए कुछ गलितयाँ करवाने के लिए कुछ गलितयों में साथ निभाने के लिए कुछ गलतियों को कारनामा बताने के लिए कुछ गलितयों का अहसास दिलाने के लिए मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं, कुछ राह दिखाने के लिए कुछ को रास्ता दिखाने के लिए  कुछ धकेलने के लिए कुछ खींच ले जाने के लिए कुछ साथ हँसने के लिए कुछ साथ आँसू बहाने के लिए कुछ साथ चलने के लिए कुछ पास

Re Kabira 049 - होली 2020

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-o Re Kabira 049 o-- हर्ष और उमंग न रोक सके कोई शिकवे-मलाल, बस आज हो सबके चेहरे पर लाल गुलाल ।  न टोक सके कोई मस्ती-धमाल, बस आज हों सब लोट कीचड़ में बेहाल ।।  न रोक सके कोई आलस-बहाने, बस आज सब निकले रंगो में नाहने ।  न टोक सके कोई हिंदू-मुस्लमान, बस आज सब  लग जाए मिलने मानाने ।।  न रोक सके कोई राजा-रंक, बस आज बिखर जाने दो.. निखर जाने दो सत-रंग ।  न टोक सके कोई खेल-अतरंग, बस आज हो सब के मन में उमंग.. बस हर्ष और उमंग ।। ..... होली पर आप सब को बहुत सारी शुभकामनायें  .... Wishing you all a very Happy Holi *** आशुतोष झुड़ेले  *** -o Re Kabira 049 o--

Re Kabira 048 - डोर

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-o Re Kabira 048 o-- डोर जब पानी मुट्ठी से सरक जावे, केबल हतेली गीली रह जावे। निकल गयो वकत बापस नहीं आवे, तेरे हाथ अफसोस ठय जावे।। ज़िन्दगी मानो तो बहुत छोटी होवे, और मानो तो बहुतै लंबी हो जावे।   सोच संकोच में लोग आगे बड़ जावे, तोहे पास पीड़ा दरद धर जावे।। जब-तब याद किसी की आवे, तो उनकी-तुम्हारी उमर और बड़ जावे।  चाहे जो भी विचार मन में आवे, बिना समय गवाये मिलने चले जावे।।   डोर लम्बी होवे तो छोर नजर न आवे,  और  जब  समटे तो उलझ बो जावे।  बोले रे कबीरा नाजुक रिस्ते-धागे होवे, झटक से जे टूट भी  जावे।। *** आशुतोष झुड़ेले  *** -o Re Kabira 048 o--