Posts

Showing posts from February, 2024

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू - Re Kabira 090

Image
--o Re Kabira 090 o-- उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू  उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू,  क्यों सो रही है यूँ ? पता नहीं कल कहाँ जले तू,  क्यों रो रही है यूँ ? निकलती अंधियारे में तू, क्यों खो रही है यूँ ? लड़खड़ाती न संभलती तू, क्यों हो रही है यूँ ? उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू,  क्यों सो रही है यूँ ? अंगारों पे भुनकती तू, क्यों रो रही है यूँ ? प्रेतों सी भटकती तू, क्यों खो रही है यूँ ? घबड़ाती न लड़ती तू, क्यों हो रही है यूँ ? उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू,  क्यों सो रही है यूँ ? मझधार में खिलखिला तू, क्यों रो रही है यूँ ? चट्टानों में घर बना तू, क्यों खो रही है यूँ ? बारिष में आग लगा तू, क्यों हो रही है यूँ ? उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू,  क्यों सो रही है यूँ ? आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 090 o-- 

तमाशा बन गया - Re Kabira 089

Image
--o Re Kabira 089 o-- कई बार अपने अनुभवों, अपने चुनावों, अपनी धारणाओं के कारण हम स्वयं के ही आलोचक बन जाते हैं। अपने आप पर संदेह करने लगते हैं, अपने आप से वो सवाल करने लगते हैं जिनका कोई जवाब नहीं होता।  ऐसे ही भाव को व्यक्त करती एक कविता ... तमाशा बन गया तमाशा बन गया पता नहीं कैसे मेरी ज़िन्दगी का मसला बन गया, रह-रह कर बिगड़ते-बिगड़ते मेरे फ़ैसलों का तमाशा बन गया पता नहीं कैसे मेरी बात-चीतों का करारनामा बन गया, रह-रह कर सीखते-सीखते मेरी बेख़बरी का तमाशा बन गया  पता नहीं कैसे मेरी रस्म-ओ-राह का फायदा-नुक्सान बन गया, रह-रह कर कुचलते-कुचलते मेरे उसूलों का तमाशा बन गया पता नहीं कैसे मेरी नाराज़गी का इन्तेक़ाम बन गया, रह-रह कर छुपते-छुपते मेरे किस्सों का तमाशा बन गया पता नहीं कैसे मेरी दोस्ती का मक़बरा बन गया, रह-रह कर गिरते-गिरते मेरे मायने का तमाशा बन गया  पता नहीं कैसे मेरी गुहार का शोर बन गया, रह-रह कर बहते-बहते मेरे आँसुओं का तमाशा बन गया  पता नहीं कैसे मेरी हक़ीक़त का झूठ बन गया, रह-रह कर ढकते-ढकते मेरे परदे का तमाशा बन गया पता नहीं कैसे मेरी सोच का ताना बन गया, रह-रह कर खड़े-खड़े मेरे ख़्वाबो

चलो नर्मदा नहा आओ - Re Kabira 088

Image
--o Re Kabira 88 o--   चलो नर्मदा नहा आओ  हमने विचित्र ये व्यवस्था बनाई हैj बड़ी अनूठी नर्मदा में आस्था बनाई है चोरी-ठगी-लूट करते जाओ, हर एकादशी नर्मदा नहा आओ दिन भर कुकर्म करो और शाम नर्मदा में डुपकी लगा आओ अन्याय अत्याचार करते जाओ, भोर होते नर्मदा नहा आओ षड्यंत रचो धोखाधड़ी करो और नर्मदा में स्नान कर आओ हमने विचित्र ये व्यवस्था बनाई है बड़ी अनोखी नर्मदा परिक्रमा बनाई है पाप तुम कर, अपराध तुम कर, नर्मदा में हाथ धो आओ कर्मों का हिसाब और मन का मैल नर्मदा में घोल आओ जितने बड़े पाप उतने बड़ा पूजन नर्मदा घाट कर आओ समस्त दुष्टता के दीप बना दान नर्मदा पाट कर आओ हमने विचित्र ये व्यवस्था बनाई है बड़ी अजीब नर्मदा की दशा बनाई है दीनो से लाखों छलाओ सौ दान नर्मदा किनारे कर आओ दरिद्रों का अन्न चुराओ और भंडारा नर्मदा तट कर आओ मैया मैया कहते अपराधों का बोझ नर्मदा को दे आओ बोल हर हर अपने दोषों से दूषित नर्मदा को कर आओ हमने विचित्र ये व्यवस्था बनाई है बड़ी गजब नर्मदा की महिमा बनाई है इतने पाप इकट्ठे कर कहाँ नर्मदा जायेगी, पर तुम नर्मदा नहा आओ हमारे पाप डोकर कैसे नर्मदा स्वर्ग जायेगी, पर तुम नर्मदा नहा आओ अप