Re Kabira 076 - एक बंदर हॉस्टल के अंदर

  --o Re Kabira 076 o--


 एक बंदर हॉस्टल के अंदर

हमेशा मुस्कुराता, हमेशा चहकता,
इधर फुदकता, उधर कूंदता, 
हाथों में जो आता, अक्सर टूट ही जाता,
हमेशा खिलखिलाता, हमेशा नटखट,
छेड़खानी करता, मसखरी करता,
चंचल,
मनचला, जो मन में आता वो कह जाता 

हमेशा दिखता था जोश में, हमेशा बोलता था जोश से,
मिलता था पूरे जोश में, घुलता था पूरे जोश 
से,
यादों में रह गया उसका मदहोश करने वाला जोश,
हमेशा जोश में जिया, जोश से ही लड़ा,
आख़िर तक न छोड़ा जोश का साथ,
कह गया बड़ी आसानी से... 
मेरे दोस्त, जब तक है होश लगा दूंगा पूरा जोश 

बोला ... 
तुम बस इतना काम करना,
जब बातें करो, 
मेरे चुटकुले दोहराना,
बार बार मसखरी याद दिलाकर हँसाना,
पर ये कभी न पूँछना, कैसा हूँ?
जब मिलो,
एक बार बिना मतलब की होली जरूर खिलाना,
कुछ खिड़की के काँच भी तोडूंगा,
नाचेँगे, गायेंगे, शोर मचायेंगे, सीटीयाँ बजायेँगे
पर ये कभी न पूँछना, कैसा हूँ?
क्यों की.. 
मेरे दोस्त, जब तक है होश लगा दूंगा पूरा जोश

एक पल शांत न बैठ सका, 
उचकता, कूंदता, भागता, दौड़ता,
हरकत करता, बकबक करता,
कहते थे हम सब - एक बंदर हॉस्टल के अंदर  
लपककर जो खुशियां पकड़ लाता, 
यादों में भी रह रह कर हँसता, खिलखिलाता,
जहाँ भी है वो, वहाँ से भी खुशियाँ बरसाता,
दिनेश सांखला - 
फिर मिलेंगे, तब तक,
सदा मुस्कुराते रहना, सदा खुशियाँ बरसाते रहना

आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

  --o Re Kabira 076 o--

Most Loved >>>

Re Kabira 086 - पतंग सी ज़िन्दगी

Re Kabira 087 - पहचानो तुम कौन हो?

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

Re kabira 085 - चुरा ले गये

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

चलो नर्मदा नहा आओ - Re Kabira 088

Re Kabira 0068 - क़ाश मैं बादल होता

Re Kabira 083 - वास्ता

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू - Re Kabira 090

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)