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Showing posts from November, 2025

अगर प्रकृति में भेदभाव होता - If Nature Discriminated - Hindi Poetry - Re Kabira 110

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-- o Re Kabira 110 o -- अगर प्रकृति में भेदभाव होता अगर आसमान का मज़हब होता तो पानी की बूँदे नहीं - तेज़ाब बरसता पहाड़ों पर बर्फ नहीं राख का ढेर होता  विषैला पानी, नदियों मे बहता लहू और  पर्वत काले - समंदर केवल लाल रंग का होता ! अगर हवा का रंग गोरा या काला होता  तो साँसों में ज़िन्दगी नहीं - मौत बहती ख़ुश्बू और बदबू में कोई फ़र्क न होता  परिंदे नहीं उड़ते, आसमान वीरान और  ज़मीन काली - बादल केवल लाल रंग का होता ! अगर पेड़ पौधों की जात होती  तो फल धतूरे - फूल सारे कनेर के होते  ज़ुबान पर बस कड़वे तीखे स्वाद होते  पानी नहीं खून से सींचते, तनों पर कांटे और  जडें ज़हरीली - पत्ते  केवल सुर्ख लाल रंग के होते ! सोचो अगर प्रकृति में भेदभाव होता, तो क्या होता? आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 110 o -- 

प्रवाह - Flow or Continuity - Hindi Poetry - Re Kabira 109

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-- o Re Kabira 109 o -- प्रवाह - बहाव, निरंतरता बहुत ही सुन्दर शब्द, एक शब्द जो अपने आप में ही कविता है और महा काव्य भी, कहानी है और कथा भी, लेख है और ग्रंथ भी.  प्रवाह जल प्रवाह से नदियाँ, झरने और सागर भी आकाश फटे सैलाब बरपे, छोड़ जाए प्रलय का विध्वंसक प्रवाह वायु प्रवाह से श्वास भी आँधी-तूफ़ान भी  क्षण में मौसम बदल जाए जब हो हवा का तीव्र प्रवाह सूरज की किरणों के प्रवाह से भोर भी साँझ भी पहर दर पहर दिन रात चलता समय का अविरल प्रवाह  प्रकृति के रंगो के प्रवाह से बसंत भी बहार भी  ऋतू बदनले का सन्देश लाये भौरों की गुंजन, पँछियों का संगीत प्रवाह मौसम में बदलाव का प्रवाह हो सूखे पत्तों से भी नम माटी से भी  बादल गरजें, जोर से बरसे तब झूमे किसान तो हर्ष प्रवाह रंगो के प्रवाह से चित्र भी कलाकृति भी कला से व्यक्त करे कलाकार अनुभूति का प्रवाह विद्या प्रवाह से एकलव्य भी अर्जुन भी  बने महान योद्धा जब मिला उन्हें गुरु ज्ञान प्रवाह  धन के प्रवाह से दरिद्र भी धनवान भी कौन समझाए धन से नहीं ध्यान से हो आनंद प्रवाह सुगंध प्रवाह हो मंदिर से भी मज़ार से भी  फिर क्यों ह...