अगर प्रकृति में भेदभाव होता - If Nature Discriminated - Hindi Poetry - Re Kabira 110

-- o Re Kabira 110 o --

अगर प्रकृति में भेदभाव होता

अगर आसमान का मज़हब होता
तो पानी की बूँदे नहीं - तेज़ाब बरसता
पहाड़ों पर बर्फ नहीं राख का ढेर होता 
विषैला पानी, नदियों मे बहता लहू और 
पर्वत काले - समंदर केवल लाल रंग का होता !

अगर हवा का रंग गोरा या काला होता 
तो साँसों में ज़िन्दगी नहीं - मौत बहती
ख़ुश्बू और बदबू में कोई फ़र्क न होता 
परिंदे नहीं उड़ते, आसमान वीरान और 
ज़मीन काली - बादल केवल लाल रंग का होता !

अगर पेड़ पौधों की जात होती 
तो फल धतूरे - फूल सारे कनेर के होते 
ज़ुबान पर बस कड़वे तीखे स्वाद होते 
पानी नहीं खून से सींचते, तनों पर कांटे और 
जडें ज़हरीली - पत्ते  केवल सुर्ख लाल रंग के होते !

सोचो अगर प्रकृति में भेदभाव होता, तो क्या होता?




आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

-- o Re Kabira 110 o -- 

Popular posts from this blog

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

रंग कुछ कह रहे हैं - Holi - Colours Are Saying Something - Hindi Poetry - Re Kabira 106

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102