वो चिट्ठियाँ वो ख़त - Lost Letters - Hindi Poetry - Re Kabira 108

-- o Re Kabira 108 o -- 
वो चिट्ठियाँ, वो ख़त

चिट्ठियों में आती थी घर के खाने की महक, 
ख़त लेकर आते थे मेरे शहर की मिट्टी, 
दुःख के आँसू, और कभी ख़ुशी में झूमती खबरें।

अब मुश्किल से मिलते हैं वो नीले-पीले लिफ़ाफे, 
हर दूसरे दिन आते हैं दरवाज़े पर सामानों के डिब्बे, 
और रद्दी के ढेर।

त्योहारों पर, व्यवहारों पर इंतज़ार रहता था डाकिए का, 
राखी पर चिट्ठियों का तांता, होली के रंगों में भीगी, 
दीवाली पर घर बुलातीं, 
वो चिट्ठियाँ, वो ख़त।

जाने कहाँ चले गए वो ख़त, क्या भूल गए हम लिखना चिट्ठियाँ?

कभी मिल जाती हैं कुछ भूली-बिसरी चिट्ठियाँ, 
जिनमें छुपे होते हैं टूटे दिल के टुकड़े, 
बहुत सी उलझनें, अड़चनें जो बोलकर नहीं कही जा सकतीं।

पुरानी किताब के पन्नों के बीच निकल आते हैं ख़त, 
खोल कर रख देते हैं लिखने वाले का दिल, 
और बार-बार भर आता हैपढ़ने वाले का मन।  

इश्क़ के इज़हार करते जो भेजे नहीं गए ख़त, 
उनमें दबी रहती हैं कविताएँ, कुछ शायरियाँ, 
यादों की रंगीन दुनिया में वापस ले जातीं, 
वो चिट्ठियाँ, वो ख़त।

जाने कहाँ चले गए वो ख़त, क्या भूल गए हम लिखना चिट्ठियाँ?

चिट्ठियाँ जिनमे हैं टूटे दिल के टुकड़े, 
खत जिन में संजो के रखे हैं अधूरे सपने, 
छुपी हैं दिल की मुरादें, कुछ अरमाँ।

ख़रोचों के निशान, ज़ख़्मों का दर्द, 
ख़ुशी के आँसू, जश्न के पैग़ाम, 
मनसूबे, ख़याल, कल्पनाएँ, योजनाएँ।

मानो धरोहर हैं, विरासत हैं स्याही में डूबे वो पन्ने, 
मिल जाते हैं भूले हुए रिश्ते, खोए हुए दोस्त, 
इनमें खो जाते हैं, और फिर मिल जाते हैं खुद ही से हम।
वो चिट्ठियाँ, वो ख़त।

जाने कहाँ चले गए वो ख़त, क्या भूल गए हम लिखना चिट्ठियाँ?




आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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