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Re kabira 085 - चुरा ले गये

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  --o Re Kabira 85 o-- चुरा ले गये  चुरा ले ग ए सुबह से ताज़गी, कुछ लोग शाम से सादगी चुरा ले ग ए   चुरा ले ग ए ज़िन्दगी से दिल्लगी, कुछ लोग बन्दे से बंदगी चुरा ले ग ए   चुरा ले ग ए आईने से अक्स, कुछ लोग मेरी परछाईं चुरा ले ग ए   चुरा ले ग ए दिल का चैन, कुछ लोग आँसुओं से नमी चुरा ले ग ए   चुरा ले गये बादलों से सतरंग, कुछ लोग पहली बारि श की ख़ु शबू चुरा ले ग ए   चुरा ले ग ए बागीचे से फूल. कुछ लोग आँगन की मिट्टी ही चुरा ले ग ए   चुरा ले ग ए जिश्म से रूह, कुछ लोग कब्र से लाश चुरा ले ग ए   चुरा के आ ए ख़ाक में डूबी चौखट पर ओ रे कबीरा, कुछ लोग चार आने का हिसाब ले ग ए आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 85 o--

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

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  --o Re Kabira 84 o-- हिचकियाँ     बहुत हिचकियाँ  आ रहीं है, आप इतना न मुझे याद किया करो बातें तो बहुत करते हो मेरी, कभी मिलने के बहाने बना लिया करो   लगता है जैसे कल ही की बात है, आप कहते थे बेवजह जश्न मना लिया करो आज बस जश्न की बातें हैं, कभी ख़ुशी कभी ग़म बाट लेने के बहाने ढूँढ लिया करो   याद तो होगा जब थोड़ा बहुत था, और हम कहते थोड़े में बहुत के मज़े लिया करो अब और-और की हो ड़ लगी है, कभी थोड़े छोटे-छोटे पल बुन लिया करो   चलते चलते हम आड़े-तिरछे रास्तों में भटकेंगे, तुम यूँ ही भटक कर फिर मिल जाया करो वैसे तो आज में जो जीने का असली मज़ा है, कभी कल को याद कर मुस्कुरा लिया करो   फूल चुन कर हमने गुलदस्ता बनाया है, भौरों को भी गुलिस्तान में मँडराने दिया करो आज हमारा सुंदर एक घरौंदा है, कभी बिना बता ए चले आ जाया करो   ढूँढते हैं हम ख़ुशियाँ गली गलियारों में, आगे बढ़ कर मुस्कुराहटें तोड़ लाया करो देखो तो हर तरफ़ अनेकों रंग है, कभी अपनी चहक से और रंग घोल जाया करो   हँसना है रोना है रोते रोते हँसना है, हर लम्हे को यादों में क़ैद

Re Kabira 083 - वास्ता

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    --o Re Kabira 83 o-- वास्ता बस चार कदमों का फासला था, जैसे साँसों को न थमने का वास्ता था  रुक गये लफ़्ज़ जुबान पर यूँ ही, जैसे शब्दों को न बयान होने का वास्ता था   निग़ाहें उनकी निग़ाहों पर टिकी थीं, मेरी झिझक को तीखी नज़रों का वास्ता था कुछ उधेड़ बुन में लगा दिमाग़ था, क्या करूँ दिल को दिल का वास्ता था कलम सिहाई में बड़ी जद्दोज़हद थी, पर ख़्वाबों को ख़यालों का वास्ता था लहू को पिघलने की ज़रूरत न थी, पर ख़ून के रिश्तों का वास्ता था फूलों को खिलने की जल्दी कहाँ थी, कलियों को भवरों के इश्क़ का वास्ता था बारिश में भीगने का शौक उनको था, कहते थे बादलों को बिजली का वास्ता था दो शब्द कहने की हिम्मत कहाँ थी, पर महफ़िल में रफ़ीक़ों का वास्ता था थोड़ा बहकने को मैं मजबूर था, मयखाने में तो मय का मय से वास्ता था न मंदिर न मस्ज़िद जाने की कोई वजह थी, मेरी दुआओं को तेरे रिवाज़ों का वास्ता था  न ही तेरे दर पर भटकने की फ़ितरत थी, ओ रे कबीरा ... मुझे तो मेरी शिकायतों का वास्ता था    मुझे तो मेरी शिकायतों का वास्ता था    आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Ka

Re Kabira 082 - बेगाना

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  --o Re Kabira 82 o-- बेगाना थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था, थी चेहरे पर मुस्कराहट और मुश्किलें झेलने का इरादा था ढूंढ़ती रही आँखें खुशियाँ, पर आँसुओं का हर कदम सहारा था मुसाफिर बन निकल तो चला, अनजान कि जीवन भी एक अखाड़ा था  चारों तरफ़ थी ऊँची दीवारें, हर रुकावट से टकराने का वादा था, थी हिम्मत तूफानों से लड़ने की और चट्टानो को तोड़ कर जाने का इरादा था  एक तरफ जज़्बा, दूसरी ओर जोश का किनारा था पता नहीं कौन जीता और किसको हार का इशारा था पता था आसान नहीं होगा, पर आगे बढ़ते रहने का वादा था रोका पाँव के छालों ने और कटीले रास्तों ने पर न रुकने का इरादा था  मील के पत्थर तो मिले बहुत, पर मंज़िल अभी भी एक नज़ारा था थी मंज़िल हमसफ़र ...  ओ रे कबीरा बेहोश बिलकुल बेगाना था थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था, थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 82 o--

Re Kabira 080 - मन व्याकुल

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  --o Re Kabira 080 o-- मन व्याकुल मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ये अनंत विचार झंझोड़ देते क्यों निर्बल करते, ये अंगिनत आत्म-प्रहार प्रबल-प्रचंड-उग्र-अभिमानी,   झुकते थक कर  मान हार चक्रवात-ओला-आंधी-बौछाड़ रूकती, रुकते क्यों नहीं ये व्यर्थ आचार क्यों टोकते, क्यों खट-खटाते, स्वप्न बनकर स्मिर्ति बुनकर ये दुराचार कहाँ से चले आते क्यों चले आते, ये असहनीय साक्षात्कार केवल ज्ञान-पश्चाताप-त्याग-परित्याग, भेद न सके चक्रव्यूह आकार कर्म-भक्ति-प्रार्थना-उपासना, है राह है पथ नहीं दूजा उपचार मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ओ रे कबीरा... ये अनंत विचार राम नाम ही हरे, राम नाम ही तरे, राम नाम ही जीवन आधार आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 80 o--

Re Kabira 079 - होली 2023

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  --o Re Kabira 079 o-- बुरा न मानो होली है   छिड़को थोड़ा प्यार से तो सारे रंग ही रंग है जो ज़रा सी भी कड़वाहट न हो तो प्रेम अभंग है पकवानों में, मिठाईयों में, वैसे तो स्वादों  के  रंग ही रंग है  जो कोई द्वारे भूखा न सोये तो मानो जीती ये जंग है हँसते मुस्कराते चेहरों में खुशियों के रंग ही रंग है जो सभी के पुछ जायें अश्रु तो सच्ची उमंग है दूर-दूर तक गाने बजाने में जोश के रंग ही रंग है  जो हम अभिमान के नशे धुत्त न हों तो स्वीकार ये ढंग है  छेड़खानियों में, चुटकुलों में तो हास्य रंग ही रंग है  जो बदतमीज़ी जबरजस्ती हटा दी जाये तो असली व्यंग है? भीगे कपडों में लिपट पिचकारी में लादे सारे रंग ही रंग हैं  जो एक प्याली चाय और पकोड़े हो जायें तो दूर तक उड़े मस्ती की पतंग है  घर-परिवार, मित्र-दोस्तों के साथ त्योहार मानाने में रंग ही रंग है  जो थोड़ी भक्ति मिला दें, आस्था घोल दें तो होली नहीं सत संग है  हम सब दूर सही पर संग हैं तो हर तरफ़ रंग ही रंग है  जो रूठ कर घर में छुप कर बैठे तो जीवन बड़ा बेरंग है  गिले-शिकवे मिटा लो देखो फिर होली के रंग ही रंग है  बुरा न मानो होली है तभी तो सदैव से उत्तम प्रसंग है  .

Re Kabira 078 - ऐसे कोई जाता नहीं

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    --o Re Kabira 078 o-- ऐसे कोई जाता नहीं आज फिर आखों में आँसू रोके हूँ, आज तो मैं रोऊँगा बिल्कुल नहीं आज मैं और भी ख़फ़ा हूँ, आज मैं चुप रह सकता बिल्कुल नहीं  जाना तो है सबको एक दिन, पर ऐसे जाने का हक़ तुझको था ही नहीं बहुत तकलीफ़ हो रही है, पर आँसू बहाने की मोहलत मिली ही नहीं  बिछड़ने के बाद पता चला, फ़ासले सब बहुत छोटे हैं कोई बड़ा नहीं हमेशा की तरह पीछे-अकेले छोड़ गया, देखा मुझे पीछे खड़ा क्यों नहीं इतनी शिकायतें है मुझको, पर अच्छे से लड़ने का मौक़ा तूने दिया ही नहीं ग़ुस्सा करने हक़ है मेरा, पर किस को जताऊँ तू तो  अब   यहाँ है ही नहीं वो ठिठोलियाँ, वो छेड़खानियाँ, फ़र्श पर लोट-लॉट कर हँसना, याद करूँ या नहीं? केवल खाने की बातें, खाने के बाद मीठा, और फिर खाना, याद करूँ कि नहीं? वो साथ लड़ी लड़ाइयाँ, रैगिंग के किस्से,  छुप कर सुट्टे, याद करने के लिए तू नहीं  बिना बात की बहस, टॉँग खीचना, मेरी पोल खोलने वाला अब कभी मिलेगा नहीं  आँखें बंद करूँ या खोल के रखूँ, तेरा मसखरी वाला चेहरा हटता ही नहीं खिड़की से बाहर काले बादल छट गए, फिर भी तू दिखता क्यों नहीं  रह-रह कर याद आते है हर एक पल, फिर म

Re Kabira 077 - लड़ाई

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--o Re Kabira 077 o-- लड़ाई सब लड़ रहे कोई न कोई लड़ाई कुछ चारों छोर से  किसी की है अपने आप से लड़ाई तो किसी की और से   ज़रूरी नहीं कि दिखे चोटों में, या फिर टूटी चौखटों में छिप जाती हैं अधिक्तर लड़ाई, मुस्कुराते मुखौटों में अगर मैं नहीं लड़ूँगा अपनी लड़ाई, तो और कौन  सबको लड़नी खुद की लड़ाई, बाँकी सारे मौन   झंझोड़ देती, तो कभी निचोड़ देती, पर लड़ना मजबूरी है क्यों घबड़ाता है लड़ने से, ओ रे कबीरा लड़ते रहना ज़रूरी है लड़ाई अपनी अपनी होती है, खुद को ही लड़ना होती है  उम्मीद की कोई और लड़ेगा, फ़िज़ूल खर्च लड़ाई होती है आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 077 o--

Re Kabira 074 - भाग भाग भाग

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  --o Re Kabira 074 o-- भाग भाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग तेज़ भाग, भाग तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग और तेज़ भाग, और तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग इधर भाग, उधर भाग, बस भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग गिर फिर उठ, उठ फिर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग ठोकर से न रुक, चोट से न चूक भाग भाग भाग, भाग भाग भाग दिन भर भाग, रात भर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग चोरी कर भाग, धोखा देकर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कुचल कर भाग, धकेल कर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग धुप में, ठण्ड में, बारिश में भाग   भाग भाग भाग, भाग भाग भाग बीमारी में भाग, लाचारी में भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भूखे थके भाग, थके भूखे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग सो जाग खा भाग, खा सो जाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कोई न रोके, कोई न टोके भाग भाग भाग, भाग भाग भाग अकेले ही भाग, सबको ले भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग साँसे उखड़े भाग, टांगे टूटे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग हँसते रोते भाग, रोते गाते भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग, भाग कहाँ पहुँचना हैं?, है पता तुझको? भाग, भाग क्या छूटा?, है पता तुझको? भाग भाग क्या पाया?, है पता तुझक

Re Kabira 073 - ख़रोंचे

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  --o Re Kabira 073 o-- ख़रोंचे किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर किसको चाहिये ख़्वाब भारी चट्टानों से, ज़िन्दगी की लहरों ने क्या कम तोड़ा है टकरा कर   किसको जाना धरा की दूसरी छोर तक, चार कदमों का फासला ही काफी है चलो अगर किसको उड़ना है आसमान के पार, बस कुछ बादल चाहिये हैं जो बरसे जम कर किसको बटोरना है दौलत सारे जहाँ की, चकाचक की होड़ मे सभी लगे हुये हैं देखो जिधर  किसको इकट्ठे करने सहानुभूति दिखाने वालों को, चारों ओर हज़ारों की भीड़ है सारे बुत मगर किसको चाह है किसी कि दुआ की, लगता है बद-दुआ ही है जिसका हुआ असर  किसको सहारा चाहिये मदहोशी का, ये अभिमान का ही तो नशा है जो चढ़े सर किसको हिसाब चाहिये हर पल का, थोड़ा वक़्त तो निकाल सकते हैं साथ एक पहर किसको लूटना है वाह-वाही सब की, कभी-कभी तो हम बात कर सकतें हैं तारीफ़ कर किसको पढ़ना है कवितायेँ शौर्य-सुंदरता की, बस एक शब्द ही काफी है शुक्रिया-धन्यवाद कर  किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 073 o--

Re Kabira 072 - बातें हैं बातों को क्या !!!

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--o Re Kabira 072 o-- बातें हैं बातों को क्या  बातों बातों में निकल पड़ी बात बातों की,  कि बातों की कुछ बात ही अलग है  मुलाकातें होती हैं तो बातें होती हैं, फिर मुलाकातों की बातें होती है और मुलाकातें न हो तो भी बातें होती है देखे तो नहीं, पर बातों के पैर भी होते होंगे, कुछ बातें धीरे की जाती हैं, कुछ तेज़, कुछ बातें दबे पाँव निकल गयी तो दूर तक पहुँच जाती हैं  कुछ बातें दिल को छु कर निकल जाती हैं, और कभी सर के ऊपर से  कुछ बातें तो उड़ती-उड़ती, और कभी गिरती-पड़ती बातें आप तक पहुँच ही जाती है  बातों के रसोईये भी होते होंगे, जो रोज़ बातें पकाते हैं  कुछ लोग मीठी-मीठी बातें बनाते हैं, कुछ कड़वी बातें सुना जातें हैं कभी आप चटपटी बातें करते हैं, तो कभी मसालेदार बातें हो जाती हैं   और कुछ बातें तो ठंडाई जैसी होती है, दिल को ठंडक पहुंचा जाती हैं  वैसे तो अच्छी बातें, बुरी बातें, सही बातें और गलत बातें होती  हैं बातों का वजन भी होता है, कुछ हलकी होती हैं तो कुछ बातें भारी हो जाती हैं यूं तो कुछ लोग बातें छुपा लेते, तो  कुछ  बातों को रखकर चले जाते हैं, कोई दबा देता है,  और   फिर कोई आकर बातों तो उछाल ज

Re Kabira 071 - कीमती बहुत हैं आँसू

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--o Re Kabira 071 o--   कीमती बहुत हैं आँसू  छलके तो ख़ुशी के, जो बहें तो दुःख के आँसू कभी मिलन के, तो कभी बिछड़ने के आँसू कभी सच बताने पर, कभी झूठ पकड़े जाने पर निकल आते आँसू कभी कमज़ोरी बन जाते, तो कभी ताक़त बनते आँसू कभी पीकर, तो कभी पोंछकर चलती ज़िन्दगी संग आँसू कभी लगते मोतियों जैसे, तो कभी दिखते ख़ून के आँसू कभी खुद को खाली कर देते, तो कभी सहारा बन जाते आँसू कभी दरिया बन जाते, तो कभी सैलाब बन जाते ऑंसू दिल झुमे तो, रब चूमे  तो पिघलते भी आँसू कभी डर के मारे,  कभी घबड़ाहट से आ जाते हैं आँसू गुस्से में राहत देते, धोखे में आहात देते ऑंसू कहते हैं बह जाने दो, दिल हल्का कर देंगे ये आँसू दर्द का , चोटों का , तकलीफों का आइना आँसू नफरत की ज़िद में, इश्क़ की लत जमते आँसू मजबूरी के, लाचारी के, जीत के, हार के होते आँसू सीरत तो नम होती इनकी, सूख भी जाते हैं आँसू कवितओं में, कहानियों में, शेऱ-शायरियों में बस्ते ऑंसू प्रेम के, भक्ति के, समर्पण के गवाह आँसू कभी छोटे, कभी बड़े, बहुत काम के हैं ऑंसू ओ रे कबीरा संजो के रखो, कीमती बहुत हैं आँसू आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 071 o--

Re Kabira 0068a - I wish I were a cloud

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  --o Re Kabira 068 o-- I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, always lost in my own thoughts, and everyone would have called me a crazy cloud, winds would have carried my abode, and would have changed colors with every season. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have been adorned on eyes of the sun, and would have covered the moon in a cashmere shawl, would have been a prince's horse, and wings of a beautiful fairy. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have played hide & seek with the stars, and would have flown high with the birds, would have thundered when sad, and would have rained in joy. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud, would have been a roof on top of a couple in love, and would have danced wild would have been a story, a poem, or a song and would be been a colorful painting. I wish I were a cloud, a bit crazy cloud,  would have been  impersonator dreaming all day, and everyone would have been jealous, would have had boundless dreams, a

Re Kabira 0067 - लता जी का तप

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--o Re Kabira 067 o-- माँ सरस्वती का तप करो तो ऐसे, किया जप लता जी ने है जैसे, आत्मा ने छोड़ा नहीं देह तब तक, कर न ली अंतिम वंदना जब तक । #LataMangeshkar 1929 - 2022 🙏🏽 #RIPLataMangeshkar आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 067 o--

Re Kabira 0068 - क़ाश मैं बादल होता

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--o Re Kabira 068 o-- क़ाश मैं बादल होता क़ाश मैं बादल होता, थोड़ा पागल होता, अपनी मौज़ में मशग़ूल होता, कहते लोग मुझे आवारा बादल, हवा के झोकों पर मेरा घर होता, हर मौसम रंग बदलता.   क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता, कभी सूरज का काजल, कभी चंदा का आँचल होता, कभी राजकुमार का घोड़ा, कभी सुन्दर परी के पंख होता.   क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता, तारों के संग ऑंख मि चौ ली खेलता, पंक्षियों संग ऊँची उड़ान भरता, रूठ जाने पर ज़ोर गरजता, खुश होकर फिर खूब बरसता.   क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता, आशिक़ों की छप्पर होता, दीवानों जैसे मस्त झूमता, कहानी बनता, कविता बनता, गीत बनता, रंगों में भी खूब समता.   क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता, बहरूपिया बन ख्याल बुनता, सब मुझसे जलते आहें भरते, सोच मेरी आज़ाद होती, आज़ाद मैं होता जैसे परिंदा, क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता, क़ाश मैं बादल होता थोड़ा पागल होता. आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 068 o--