Re Kabira 080 - मन व्याकुल

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मन व्याकुल

मन व्याकुल

मन व्याकुल क्यों विचलित करते,
ये अनंत विचार
झंझोड़ देते क्यों निर्बल करते,
ये अंगिनत आत्म-प्रहार

प्रबल-प्रचंड-उग्र-अभिमानी,  
झुकते थक कर  मान हार
चक्रवात-ओला-आंधी-बौछाड़ रूकती,
रुकते क्यों नहीं ये व्यर्थ आचार

क्यों टोकते, क्यों खट-खटाते,
स्वप्न बनकर स्मिर्ति बुनकर ये दुराचार
कहाँ से चले आते क्यों चले आते,
ये असहनीय साक्षात्कार

केवल ज्ञान-पश्चाताप-त्याग-परित्याग,
भेद न सके चक्रव्यूह आकार
कर्म-भक्ति-प्रार्थना-उपासना,
है राह है पथ नहीं दूजा उपचार

मन व्याकुल क्यों विचलित करते,
ओ रे कबीरा... ये अनंत विचार
राम नाम ही हरे, राम नाम ही तरे,
राम नाम ही जीवन आधार


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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