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Re Kabira 081 - राम राम राम राम

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  --o Re Kabira 81 o-- राम राम राम राम सुख में राम राम, दुःख में राम राम जीत में राम राम, रीत में राम राम राम राम राम राम, राम नाम राम नाम भटके तो राम राम, अटके तो राम राम  बिछड़े तो राम राम, बिगड़े तो राम राम राम राम राम राम, राम नाम राम नाम चिदानंद  है राम राम,  सदानंद  है राम राम अनुभूति है राम राम, भवभूति है राम राम  राम राम राम राम, राम नाम राम नाम भक्ति दे राम राम, शक्ति दे राम राम बुद्धि दे राम राम, समृद्धि दे राम राम राम राम राम राम, राम नाम राम नाम राम राम राम राम आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 81 o--

Re Kabira 080 - मन व्याकुल

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  --o Re Kabira 080 o-- मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ये अनंत विचार झंझोड़ देते क्यों निर्बल करते, ये अंगिनत आत्म-प्रहार प्रबल प्रचंड उग्र अभिमानी,   झुकते थक कर  मान हार चक्रवात ओला आंधी बौछाड़ रूकती, रुकते क्यों नहीं ये व्यर्थ आचार टोकते क्यों खट-खटाते, स्वप्न बनकर स्मिर्ति बुनकर ये दुराचार कहाँ से चले आते क्यों चले आते, ये असहनीय साक्षात्कार कर्म पश्चाताप त्याग परित्याग, भेद न सके चक्रव्यूह आकार भक्ति प्रार्थना भजन उपासना, है राह है पथ नहीं दूजा उपचार मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ओ रे कबीरा... ये अनंत विचार राम नाम ही हरे राम नाम ही तरे, राम नाम ही जीवन आधार आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 80 o--

Re Kabira 079 - होली 2023

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  --o Re Kabira 079 o-- बुरा न मानो होली है   छिड़को थोड़ा प्यार से तो सारे रंग ही रंग है जो ज़रा सी भी कड़वाहट न हो तो प्रेम अभंग है पकवानों में, मिठाईयों में, वैसे तो स्वादों  के  रंग ही रंग है  जो कोई द्वारे भूखा न सोये तो मानो जीती ये जंग है हँसते मुस्कराते चेहरों में खुशियों के रंग ही रंग है जो सभी के पुछ जायें अश्रु तो सच्ची उमंग है दूर-दूर तक गाने बजाने में जोश के रंग ही रंग है  जो हम अभिमान के नशे धुत्त न हों तो स्वीकार ये ढंग है  छेड़खानियों में, चुटकुलों में तो हास्य रंग ही रंग है  जो बदतमीज़ी जबरजस्ती हटा दी जाये तो असली व्यंग है? भीगे कपडों में लिपट पिचकारी में लादे सारे रंग ही रंग हैं  जो एक प्याली चाय और पकोड़े हो जायें तो दूर तक उड़े मस्ती की पतंग है  घर-परिवार, मित्र-दोस्तों के साथ त्योहार मानाने में रंग ही रंग है  जो थोड़ी भक्ति मिला दें, आस्था घोल दें तो होली नहीं सत संग है  हम सब दूर सही पर संग हैं तो हर तरफ़ रंग ही रंग है  जो रूठ कर घर में छुप कर बैठे तो जीवन बड़ा बेरंग है  गिले-शिकवे मिटा लो देखो फिर होली के रंग ही रंग है  बुरा न मानो होली है तभी तो सदैव से उत्तम प्रसंग है  .

Re Kabira 078 - ऐसे कोई जाता नहीं

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    --o Re Kabira 078 o-- ऐसे कोई जाता नहीं आज फिर आखों में आँसू रोके हूँ, आज तो मैं रोऊँगा बिल्कुल नहीं आज मैं और भी ख़फ़ा हूँ, आज मैं चुप रह सकता बिल्कुल नहीं  जाना तो है सबको एक दिन, पर ऐसे जाने का हक़ तुझको था ही नहीं बहुत तकलीफ़ हो रही है, पर आँसू बहाने की मोहलत मिली ही नहीं  बिछड़ने के बाद पता चला, फ़ासले सब बहुत छोटे हैं कोई बड़ा नहीं हमेशा की तरह पीछे-अकेले छोड़ गया, देखा मुझे पीछे खड़ा क्यों नहीं इतनी शिकायतें है मुझको, पर अच्छे से लड़ने का मौक़ा तूने दिया ही नहीं ग़ुस्सा करने हक़ है मेरा, पर किस को जताऊँ तू तो  अब   यहाँ है ही नहीं वो ठिठोलियाँ, वो छेड़खानियाँ, फ़र्श पर लोट-लॉट कर हँसना, याद करूँ या नहीं? केवल खाने की बातें, खाने के बाद मीठा, और फिर खाना, याद करूँ कि नहीं? वो साथ लड़ी लड़ाइयाँ, रैगिंग के किस्से,  छुप कर सुट्टे, याद करने के लिए तू नहीं  बिना बात की बहस, टॉँग खीचना, मेरी पोल खोलने वाला अब कभी मिलेगा नहीं  आँखें बंद करूँ या खोल के रखूँ, तेरा मसखरी वाला चेहरा हटता ही नहीं खिड़की से बाहर काले बादल छट गए, फिर भी तू दिखता क्यों नहीं  रह-रह कर याद आते है हर एक पल, फिर म

Re Kabira 077 - लड़ाई

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--o Re Kabira 077 o-- लड़ाई सब लड़ रहे कोई न कोई लड़ाई कुछ चारों छोर से  किसी की है अपने आप से लड़ाई तो किसी की और से   ज़रूरी नहीं कि दिखे चोटों में, या फिर टूटी चौखटों में छिप जाती हैं अधिक्तर लड़ाई, मुस्कुराते मुखौटों में अगर मैं नहीं लड़ूँगा अपनी लड़ाई, तो और कौन  सबको लड़नी खुद की लड़ाई, बाँकी सारे मौन   झंझोड़ देती, तो कभी निचोड़ देती, पर लड़ना मजबूरी है क्यों घबड़ाता है लड़ने से, ओ रे कबीरा लड़ते रहना ज़रूरी है लड़ाई अपनी अपनी होती है, खुद को ही लड़ना होती है  उम्मीद की कोई और लड़ेगा, फ़िज़ूल खर्च लड़ाई होती है आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 077 o--

Re Kabira 076 - एक बंदर हॉस्टल के अंदर

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    --o Re Kabira 076 o-- हमेशा मुस्कुराता, हमेशा चहकता, इधर फुदकता, उधर कूंदता,  हाथों में जो आता, अक्सर टूट ही जाता, हमेशा खिलखिलाता, हमेशा नटखट, छेड़खानी करता, मसखरी करता, चंचल, मनचला,  जो मन में आता वो कह जाता  हमेशा दिखता था जोश में, हमेशा बोलता था जोश से, मिलता था पूरे जोश में, घुलता था पूरे जोश  से , यादों में रह गया उसका मदहोश करने वाला जोश, हमेशा जोश में जिया, जोश से ही लड़ा, आख़िर तक न छोड़ा जोश का साथ, कह गया बड़ी आसानी से...  मेरे दोस्त, जब तक है होश लगा दूंगा पूरा जोश  बोला ...  तुम बस इतना काम करना, जब बातें करो,  मेरे चुटकुले दोहराना, बार बार मसखरी याद दिलाकर हँसाना, पर ये कभी न पूँछना, कैसा हूँ? जब मिलो, एक बार बिना मतलब की होली जरूर खिलाना, कुछ खिड़की के काँच भी तोडूंगा, नाचेँगे, गायेंगे, शोर मचायेंगे, सीटीयाँ बजायेँगे पर ये कभी न पूँछना, कैसा हूँ? क्यों की..  मेरे दोस्त, जब तक है होश लगा दूंगा पूरा जोश एक पल शांत न बैठ सका,  उचकता, कूंदता, भागता, दौड़ता, हरकत करता, बकबक करता, कहते थे हम सब - एक बंदर हॉस्टल के अंदर   लपककर जो खुशियां पकड़ लाता,  यादों में भी रह रह कर हँसता, खि

Re Kabira 075 - क्षमा प्रार्थी हूँ

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    --o Re Kabira 075 o-- क्षमा प्रार्थी हूँ, था मस्तक पर स्वार्थ चढ़ा, मेरी वाणी में था क्रोध बड़ा  हृदय से न मोह उखड़ा, मेरी चाल में था अहँकार बड़ा क्षमा प्रार्थी हूँ, था में निराशा में खड़ा, मेरी बातों में था झूठ बड़ा आलस्य में यूँ ही था पड़ा, मेरे विचारों को था ईर्ष्या ने जकड़ा क्षमा प्रार्थी हूँ, था मद जो मेरे साथ खड़ा, मेरी सोच को था लोभ ने पकड़ा  क्षमा माँगने में जो देर कर पड़ा, नत-मस्तक द्वार में खड़ा  क्षमा प्रार्थी हूँ,  क्षमा का है व्यव्हार बड़ा, दशहरा का है जैसे त्योहार बड़ा क्षमा का है व्यव्हार बड़ा, दशहरा का है जैसे त्योहार बड़ा सियावर रामचंद्र की जय !! ... दशहरा पर आप सब को शुभकामनायेँ ... आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 075 o--