मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया - Relationships - Hindi Poetry - Re Kabira 107

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मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया - Relationships - Hindi Poetry - Re Kabira 107

मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया,
शायद रिश्तों के मायने समझ पाऊँ,
हो सकता है रिश्तेदारी निभाना सीख जाऊँ

पापा बन हाथ पकड़ चलना सिखा दिया,
पिता बन सही गलत में फर्क बता पाऊँ,
बाप बन ज़माने से ख़ुद के लिए लड़ जाऊँ

मम्मी बन जबरदस्ती रोटी का निवाला खिला दिया,
माता राम बन सिर पर हाथ फेर चिंताएं भगा पाऊँ,
माँ बन कान-मरोड़ गलत संगती से खींच लाऊँ 

भाई बन साईकल पर आगे बैठा स्कूल पहुँचा दिया,
बड़ा बन गले में हाथ डाल मेलों में घुमा पाऊँ,
छोटा बन शैतानियों में चुपचाप साथ निभा जाऊँ 

बहन बन रो धोके ही सही थोड़ा तो सभ्य बना दिया,
दीदी बन सपनों को बार-बार बुनना सिखा पाऊँ,
छोटी बन बड़े होने मतलब आप समझ जाऊँ 

बच्चे बन खुद में कमियों को मानो दर्पण में दिखा दिया,
बेटा बन खुद से और भी आगे बढ़ना सीख पाऊँ,
बेटी बन अपनी ज़िद मनवाने का गुर सीख जाऊँ 

दादा-दादी बन अपने अनुभवों को कहानियों में पिरो दिया,
चाचा-मामा बन संबंधों में समझौते का महत्त्व सीख पाऊँ,
जीजा-फूफा बन रिश्तों में सही दूरियों का मतलब बता जाऊँ

दूर का सम्बन्धी बन नातों की अहमियत को समझा दिया 
दुश्मन बन अपना ख्याल करना सीख पाऊँ,
और दोस्त बन बिना वजह हाल चाल पूँछ जाऊँ,

सबसे जरूरी,
अर्धांगिनी बन ख़ुद पर अपना हक़ जाता दिया,
पत्नी बन त्याग की सही परिभाषा समझ जाऊँ,
जीवन-साथी बन हर कदम पर साथ खड़े रहना सीख पाऊँ 

मैंने अपने आप से ही नाता जोड़ लिया,
शायद ख़ुद को समझ पाऊँ,
शायद ख़ुद को और समझ जाऊँ



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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