--o Re Kabira 063 o--
दीवार पर एक घड़ी, कलाई पर दूसरी घड़ी
घर के हर कमरे में अड़ी है एक घड़ी
रोज़ सुबह जगाती, इंतेज़ार कराती है घड़ी
कुछ सस्ती, कुछ महँगी, गहना भी बन जाती है घड़ी
इठलाती, नखरे दिखाती, हमेशा टिक-टिकाती है घड़ी
कुछ धीरे चलती, कुछ तेज़ चलती है घड़ी
कभी रुक जाती है, पर समय ज़रूर बताती है घड़ी,
कुछ अजब ही जुड़ी है मुझसे ये घड़ी, और वो घड़ी
सुख़ की, दुःख की, ख़ुशियों की भी होती है घड़ी
परेशानियाँ भी आती हैं घड़ी-घड़ी
तेज चले तो इंतेहाँ की, धीरे चले तो इंतज़ार की है घड़ी
दौड़े तो दिल की, थक जाओ तो सुस्ताने की है घड़ी
बच्चों के खेलने जाने की घडी, बूढ़ी आखों के लिए प्रतीक्षा की घड़ी
जीत की, हार की, भागने की, सम्भलने की घड़ी
यादों की, कहानियों की, किस्सों की, गानो की भी होती है घड़ी
कुछ अजब ही जुड़ी है मुझसे ये घड़ी, और वो घड़ी
किसी के आने की घड़ी, किसी के जाने की घड़ी
किसी न किसी बहाने की भी होती है घड़ी
कोई चाहे धीमी हो जाये ये घड़ी, रुक जाए ये घड़ी
कोई चाहे बस किसी तरह निकल जाये ये घड़ी
कभी फैसले की घड़ी, तो कभी परखने की घड़ी
कभी हक़ीकत की घड़ी, तो कभी यकीन की घड़ी
कभी व्यस्त होती घड़ी, तो कभी पुरसत की घड़ी,
कुछ अजब ही जुड़ी है मुझसे ये घड़ी, और वो घड़ी
तूफ़ान की घडी, सुक़ून की घड़ी,
इंक़लाब की, क्रांति की भी होती है घड़ी
यात्रा की घड़ी, वार्ता की घड़ी,
युद्ध का शांति का भी ऐलान करती घड़ी
बदलाव की घड़ी, ग्लानि की घड़ी
समर्पण की घड़ी, आत्मनिरिक्षण की घड़ी,
सच की, झूठ की, प्रार्थना की घड़ी
इंसान की, शैतान की, भगवान् की घड़ी
चलती रहे वक़्त के साथ, बस वो है घड़ी
कोई चाहे या न, चलने का नाम है घड़ी
थम गयी वो तेरी साँसे है, चल रही अब भी घड़ी
कुछ अजब ही जुड़ी है मुझसे ये घड़ी, और वो घड़ी
आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
--o Re Kabira 063 o--
तेज चले तो इंतेहाँ की, धीरे चले तो इंतज़ार की है घड़ी -----> I liked it.
ReplyDeletethanks dada.. kept on writing in a flow.
ReplyDeleteGood one..
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