खुशियां समिट गयीं, आशाएँ बिखर गयीं
कुछ तो ढूंढ रहा है बंदा?
रिश्ते अटक गए, नाते चटक गए
कुछ न समझे है ये बाशिंदा?
कुछ तो ढूंढ रहा है बंदा?
रिश्ते अटक गए, नाते चटक गए
कुछ न समझे है ये बाशिंदा?
उसूल लुट गए, सुविचार मिट गए
क्यों नहीं हो रही निंदा?
झूठ जीत गया, सच बदल गया
क्यों नहीं हैं हम शर्मिंदा?
दुआयें गुम गयीं, आशीर्वाद कम गया
किसे पुकारे अब नालंदा?
बहुत तप हो गए, रोज़ व्रत हो गए
किसे भक्ति दिखाये रे काबिरा, रे गोविंदा?
सुकून चला गया, चैन न रह गया
कैसे हैं लोग यूँ ज़िंदा?
लालच बस गयी, तृष्णा रह गयी
कैसे निकालोगे ये फंदा?
शहर बस गए, गांव घट गए
कहाँ बनेगा मेरा घरौंदा?
ख़्वाब रह गए, सपने बह गए
कहाँ भटक रहा परिंदा?
Ashutosh Jhureley
--o Re Kabira 064 o--
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