Re Kabira 075 - क्षमा प्रार्थी हूँ

  --o Re Kabira 075 o--


क्षमा प्रार्थी हूँ,
था मस्तक पर स्वार्थ चढ़ा, मेरी वाणी में था क्रोध बड़ा 
हृदय से न मोह उखड़ा, मेरी चाल में था अहँकार बड़ा
क्षमा प्रार्थी हूँ,
था में निराशा में खड़ा, मेरी बातों में था झूठ बड़ा
आलस्य में यूँ ही था पड़ा, मेरे विचारों को था ईर्ष्या ने जकड़ा
क्षमा प्रार्थी हूँ,
था मद जो मेरे साथ खड़ा, मेरी सोच को था लोभ ने पकड़ा 
क्षमा माँगने में जो देर कर पड़ा, नत-मस्तक द्वार में खड़ा 
क्षमा प्रार्थी हूँ, 
क्षमा का है व्यव्हार बड़ा, दशहरा का है जैसे त्योहार बड़ा
क्षमा का है व्यव्हार बड़ा, दशहरा का है जैसे त्योहार बड़ा

सियावर रामचंद्र की जय !!
... दशहरा पर आप सब को शुभकामनायेँ ...

आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

 --o Re Kabira 075 o--

Most Loved >>>

Rekabira 085 - चुरा ले गये

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

Re Kabira 080 - मन व्याकुल

Re Kabira 082 - बेगाना

Re Kabira 055 - चिड़िया

Re Kabira 050 - मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं

Re Kabira 011 - Stubborn

Re Kabira 079 - होली 2023

Re Kabira 083 - वास्ता

Re Kabira 065 - वो कुल्फी वाला