लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

-- o Re Kabira 101 o--

लिखते रहो

लिखते रहो, शब्द शक्तिशाली हैं 
तो अजब मायावी भी हैं 
शब्दों में ध्यान की ताक़त है
तो ज्ञान की चाहत भी है 

लिखते रहो, शब्द प्रहार कर देते हैं 
तो वहीं मरहम् भी देते हैं
शब्दों में मन की खटास है
तो दिल की मिठास भी है

लिखते रहो, शब्द मसले बन जाते हैं
तो ये मसलों को हल भी कर जाते हैं 
शब्दों से दीवारें खड़ी हो जातीं हैं
तो पहाड़ मिट्टी में भी मिल जाते हैं

लिखते रहो, शब्द लोगों को जगा सकते हैं
तो आसानी से बँटवाते भी है
शब्दों में बहकाने की, भड़काने की फ़ितरत है 
तो मोहब्बत फैलाने की आदत भी है

लिखते रहो, शब्द तुम्हें बाँध देते हैं
तो बन्धनों से मुक्त भी करते हैं
शब्दों से ही गीत है प्रीत है मीत है
तो भक्ति की शक्ति भी है

लिखते रहो, शब्द ही अल्लाह और राम हैं
तो रावण और शैतान भी हैं 
शब्दों में राम है श्याम है
तो सियाराम राधेश्याम भी है

लिखते रहो, शब्द बेज़ुबान की जान हैं
तो इनके बिना ज़ुबानी बेजान हैं
शब्दों में ही तो बड़े-बड़े गुमनाम हैं
तो ये कितनों की पहचान भी हैं 

लिखते रहो, शब्द ही तुम्हारे व्यवहार हैं
तो ये ही तुम्हारे अंदर का द्वार हैं
बोले ओ रे कबीरा, शब्दों में ही हम तुम से मिलते हैं 
तो वहीं लोग हमे ढूँढ़ भी लेते हैं

लिखते रहो, शब्दों में लोग हमे ढूँढ़ भी लेते हैं





आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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