Re Kabira 0068 - क़ाश मैं बादल होता


--o Re Kabira 068 o--

क़ाश मैं बादल होता


क़ाश मैं बादल होता,

थोड़ा पागल होता,

अपनी मौज़ में मशग़ूल होता,

कहते लोग मुझे आवारा बादल,

हवा के झोकों पर मेरा घर होता,

हर मौसम रंग बदलता.

 

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता,

कभी सूरज का काजल,

कभी चंदा का आँचल होता,

कभी राजकुमार का घोड़ा,

कभी सुन्दर परी के पंख होता.

 

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता,

तारों के संग ऑंख मिचौली खेलता,

पंक्षियों संग ऊँची उड़ान भरता,

रूठ जाने पर ज़ोर गरजता,

खुश होकर फिर खूब बरसता.

 

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता,

आशिक़ों की छप्पर होता,

दीवानों जैसे मस्त झूमता,

कहानी बनता, कविता बनता, गीत बनता,

रंगों में भी खूब समता.

 

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता,

बहरूपिया बन ख्याल बुनता,

सब मुझसे जलते आहें भरते,

सोच मेरी आज़ाद होती,

आज़ाद मैं होता जैसे परिंदा,

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता,

क़ाश मैं बादल होता

थोड़ा पागल होता.



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira



--o Re Kabira 068 o--

Most Loved >>>

क्यों न एक प्याली चाय हो जाए - Re Kabira 091

मिलना ज़रूरी है - Re Kabira 092

Re kabira 085 - चुरा ले गये

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

Re Kabira 086 - पतंग सी ज़िन्दगी

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

Re Kabira 087 - पहचानो तुम कौन हो?

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

Re Kabira 083 - वास्ता