उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू - Re Kabira 090

--o Re Kabira 090 o--


उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू 

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू, 
क्यों सो रही है यूँ ?
पता नहीं कल कहाँ जले तू, 
क्यों रो रही है यूँ ?
निकलती अंधियारे में तू,
क्यों खो रही है यूँ ?
लड़खड़ाती न संभलती तू,
क्यों हो रही है यूँ ?

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू, 
क्यों सो रही है यूँ ?
अंगारों पे भुनकती तू,
क्यों रो रही है यूँ ?
प्रेतों सी भटकती तू,
क्यों खो रही है यूँ ?
घबड़ाती न लड़ती तू,
क्यों हो रही है यूँ ?

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू, 
क्यों सो रही है यूँ ?
मझधार में खिलखिला तू,
क्यों रो रही है यूँ ?
चट्टानों में घर बना तू,
क्यों खो रही है यूँ ?
बारिष में आग लगा तू,
क्यों हो रही है यूँ ?

उठ जा मेरी ज़िन्दगी तू, 
क्यों सो रही है यूँ ?


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira




--o Re Kabira 090 o-- 

Popular posts from this blog

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

पल - Moment - Hindi Poetry - Re Kabira 098

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102