क्यों न एक प्याली चाय हो जाए - Re Kabira 091


क्यों न एक प्याली चाय हो जाए?

 क्यों न एक प्याली चाय हो जाए?

कुछ चटपटी कुछ खट्टी-मीठी बातें, 
साथ बिस्कुट डुबो कर हो जाएं 
पूरे दिन का लेखा-जोखा, 
थोड़ी शिकायत थोड़ी वक़ालत हो जाए 
ज़रा सुस्ताके फिर भाग दौड़ में लगने से पहले,
सुबह-दोपहर-शाम ... क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए?

कभी बिलकुल चुप्पी साधे,
कभी गुनगुनाते खिलखिलाते बतयाते
कभी गहरी सोच में कभी नोक झोंक में 
कभी किसी के इंतज़ार में कभी किसी से इंकार में 
पहले आप पहले आप में , सामने रखी हुई कहीं ठंडी न हो जाए 
किसी बहाने से भी..  क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए?

छोटे बड़े सपने चीनी संग घुल जाएं 
मुश्किल बातें उलझे मसले एक फूँक में आसन हो जाएं 
खर्चे-बचत की बहस साथ अदरक कुट जाए
और बिना कुछ कहे सब समझ एक चुस्की लगाते आ जाए
सेहत के माने ही सही मीठा कम की हिदयात मिल जाए 
और फिर कहना, मन नहीं भरा.... क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए?

सकरार की चर्चा, पड़ोस की अफ़वाह मसालेदार हो जाएं 
बिगड़ते रिश्ते, नए नाते निखर जाएं 
चुटकुले-किस्से-अटकलें और भी मजेदार हो जाएं 
दोस्तों से गुमठी पर मुलाकातें यादगार हो जाएं 
और बारिश में संग पकोड़े मिल जाए तो बनाने वाले की जय जय कार हो जाए 
आखिर क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए?

अख़बार के… किताबों के पन्नों में यदि खो जाए 
चिट्ठियों में किसी के सवलाओं के जवाब न पाए 
चार लोगों में भी कोई अकेले पड़ जाए
बार-बार लिख काट फिर लिख कर भी अपनी व्यथा न सुना पाए
झिझक कर ही सही, दिल कहने पर मजबूर हो जाए 
यार... क्यों न एक और प्याली चाय हो जाए?

काली-सफ़ेद-मीठी-फीकी-अदरक-इलायची के झगड़े 
उबलने से पहले चीनी या फिर बाद में कौन पड़े इस पचड़े
लगातार बहस काफ़ी बेहतर ...  हैं फालतू के लफ़ड़े 
तप्ति गर्मी हो, बारिष हो या ठण्ड हो जकड़े 
कप ग्लास या कुल्हड़ हो, क्या फ़र्क़ पड़ता है
गरमा-गर्म ... क्यों न एक प्याली चाय हो जाए?

कुछ विचार किसी से साक्षात्कार 
कटु वचन प्रवचन इक़रार इज़हार 
प्रेम के तीन शब्द जुदाई के दो लफ्ज़ 
ओ रे कबीरा... हो जीत की ख़ुशी हार की मरहम 
टूटे वायदे अधूरी कहानियों के बीच तुम और हम 
वजह हो या न पर....  क्यों न एक प्याली चाय हो जाए?



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

Popular posts from this blog

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

पल - Moment - Hindi Poetry - Re Kabira 098

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102