शौक़ नहीं दोस्तों - Re Kabira 095

-- o Re Kabira 095 o-- 

ओ रे कबीरा - शौक़ नहीं दोस्तों

शौक़ नहीं दोस्तों

वहाँ जाने का है मुझे शौक़ नहीं दोस्तों
जहाँ ज़िस्म तो है सजे रूह नहीं दोस्तों

कुछ सुनना है कुछ सुनाना भी दोस्तों
जो कह न सकें गले लगाना भी दोस्तों

तस्वीरों में सब ज़ख़्म छुपाते हैं दोस्तों
अरसा हुआ मिले दर्द बताना है दोस्तों 

ख़ुशियाँ अधूरी हैं जो बाँटी नहीं दोस्तों
महफ़िलें बेगानी हैं जो तुम नहीं दोस्तों

हमारी यादें हैं जो बारबार हँसाती दोस्तों
मुलाक़ातें ही हैं जो क़िस्से बनाती दोस्तों

वक़्त लगता थम गया था जो तब दोस्तों
धुँधली यादों के पल जीना वो अब दोस्तों

गलियारों में गूँजे अफ़साने हमारे दोस्तों
दरवाज़ों पे भी हैं गुदे नाम तुम्हारे दोस्तों

गले में हाथ डाल बेख़बर घूमना दोस्तों
बेफ़िक्र टूटी चप्पल में चले आना दोस्तों

गुनगुनाना धुने जो कभी भूली नहीं दोस्तों
झूमें गानों पर जो फिर ले चले वहीं दोस्तों

कुछ रास्ते है जहाँ बेहोशी में भी न गुमे दोस्तों
कुछ गलियाँ हैं वहाँ हमारे निशाँ छुपे दोस्तों

लोग कहते हैं फ़िज़ूल वक़्त गवाया दोस्तों
कौन समझाए क्या कमाया है मैंने दोस्तों

कल हो न हो आज तो मेरे है पास दोस्तों
कोई हो न हो तुम मिलोगे है आस दोस्तों

तब लगा था सभी मिलने आओगे दोस्तों
अब एक से कभी न मिल पाओगे दोस्तों

जलसा-ए-दोस्ती धूम से मानना है दोस्तों
यादों के जश्न में फिर डूब जाना है दोस्तों

जिनको लगता मिलना मजबूरी है दोस्तों
उनको जताना मिलना ज़रूरी है दोस्तों

बोले ओ रे कबीरा मिलना ज़रूरी है दोस्तों
क्यों कि मिलना बहुत ही ज़रूरी है दोस्तों

वहाँ जाने का मुझे है शौक़ नहीं दोस्तों
जहाँ ज़िस्म तो है सजे रूह नहीं दोस्तों

शौक़ नहीं दोस्तों
शौक़ नहीं दोस्तों



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

-- o Re Kabira 095 o-- 

Most Loved >>>

पल - Moment - Re Kabira 098

कहाँ है पवन? - Re Kabira 099

Re kabira 085 - चुरा ले गए

चलो पवन को ढूँढ़ते हैं - Re Kabira 097

बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100

लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

Re Kabira 055 - चिड़िया

रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096

तुम कहते होगे - Re Kabira 093

Re Kabira 0025 - Carving (Greed) रुखा सूखा खायके