Re Kabira 016 - दर दर गंगे (Ganga)

--o Re Kabira 016 o--

दर दर गंगे

 || दर दर गंगे ||

बोलो सब माई की जय, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
दूर होते जा रही गंगोत्री मैं, छल-छल  दर दर गंगे ॥

प्रीत जतलाते सब मैया पर, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
विचलित हो जाती ऋषकेश में, मंदिर-मंडप दर दर गंगे ॥

आते सब पाने शुद्धि मुक्ति, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
त्रिस्क़ृत होती हर पहर हरिद्धार में, पल-पल दर दर गंगे ॥

पवित्र करें सब गंगा जल से, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
डरे हुए हैं सब नरौरा में, बूँद-बूँद दर दर गंगे ॥

रुकते नहीं कदम किनारे चलते, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
थक गयी मैला धोते कानपूर में, नल-नाल दर दर गंगे ॥

आरती गाओ गंगा मैया की, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
बदहाल हो गयी वाराणसी में, पैड़ी-पैड़ी दर दर गंगे ॥

यहाँ जमघट हो लाखों का, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
तरस रही पानी को अलाहबाद में, तट-तट दर दर गंगे ॥

मांगे वरदान विकास का, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
सब जगह लुटी पटना में, पुल-पुल दर दर गंगे ॥

प्रेरित हुए सदियों से पट पर, चिल्ला-चिल्ला  हर हर गंगे ।
हृदय चुभोता इतिहास कोलकाता में, किल-कील दर दर गंगे ॥

देखेन चले सब सागर मिले गंगा में, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
गुम हो जाती मैया गंगासागर में, लहर-लहर  दर दर गंगे ॥

कहते हैं हम माँ जिसको, चिल्ला-चिल्ला हर हर गंगे ।
बाहते जा रही बस आसूँ , घाट-घाट दर दर गंगे ॥

करें हम रक्षा इसकी, चिल्ला-चिल्ला  हर हर गंगे ।
रखे मान सम्मान मैया का, हो ना-होगी ना दर दर गंगे ॥


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley

Penned down a few lines after reading and inspired by the absolutely amazing book "Dar Dar Gange" by Abhay Mishra, Pankaj Ramendu. I have been to almost all of the places in the poem and was really touched by the story told by Abhay & Pankaj in the book.

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